बिहार चुनाव: NDA में सीट शेयरिंग तय, धर्मेंद्र प्रधान बने ‘संकटमोचक’, जानें किन सीटों पर कौन लड़ेगा इलेक्शन

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया है. हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि हर सीट पर कौन सा उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा. मिली जानकारी के अनुसार, चिराग पासवान को 29 सीटें, उपेंद्र कुशवाहा को 6 सीटें और जीतन राम मांझी की पार्टी को 6 सीटें दी गई हैं.

चिराग पासवान की सीटें और फाइनल समझौता
चिराग पासवान की 29 सीटों में बखरी, साहेबपुर कमाल, तारापुर, रोसड़ा, राजा पाकड़, लालगंज, हायघाट, गायघाट, एकमा, मढौरा, अगियांव, ओबरा, अरवल, गया, हिसुआ, फतुहा, दानापुर, ब्रम्हपुर, राजगीर, कदवा, सोनबरसा, बलिरामपुर, हिसुआ, गोविंदपुर, सिमरी बख्तियारपुर, मखदूम, कसबा, सुगौली और मोरवा शामिल हैं. सूत्रों के अनुसार, चिराग पासवान शुरू में 30-35 सीटों की मांग कर रहे थे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने 29 सीटों पर समझौता किया.

‘हम’ पार्टी की सीटें और उम्मीदवार
जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ को सिकंदरा, कुटुंबा, बराचट्टी, इमामगंज, टेकारी और अतरी की सीटें दी गई हैं. उम्मीदवारों में इमामगंज से दीपा मांझी, बराचट्टी से ज्योति देवी, टेकारी से अनिल कुमार, सिकंदरा से प्रफुल्ल कुमार मांझी, अतरी से रोमित कुमार और कुटुंबा से श्रवण भुइंया शामिल हैं. जीतन राम मांझी ने कहा कि उन्हें सिर्फ छह सीटें दी गईं, जिससे उनकी पार्टी की अहमियत कम आंकी गई है.

उपेंद्र कुशवाहा की सीटें और दावेदारी
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को इस बार सासाराम, उजियारपुर, दिनारा, मधुबनी, बाजपट्टी और महुआ की छह सीटें मिली हैं. पिछली बार एनडीए से अलग होकर उन्होंने चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार गठबंधन में शामिल होकर सीट शेयरिंग को स्वीकार किया.

सीटों के बंटवारे में रणनीति और गतिरोध
चुनाव आयोग ने जैसे ही बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, पटना में राजनीतिक हलचल तेज हो गई. एनडीए में सीटों के बंटवारे की कवायद में भाजपा के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान के बीच कई दौर की बैठकें हुईं.

चिराग पासवान के आवास पर कई दौर की बातचीत के बाद भी गतिरोध बना रहा. अंत में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय और भाजपा महासचिव विनोद तावड़े की मदद से चिराग को 29 सीटों के फाइनल फॉर्मूले पर सहमति देने के लिए मनाया गया. बैठक के अंत में दोनों नेताओं को मुस्कुराते और हाथ मिलाते देखा गया, जो एनडीए के लिए सफल वार्ता का संकेत था.

धर्मेंद्र प्रधान की रणनीति और अनुभव

धर्मेंद्र प्रधान का यही रणनीतिक कौशल उन्हें भाजपा का भरोसेमंद नेता बनाता है. उन्होंने पहले भी बिहार और अन्य राज्यों में जटिल चुनावी परिस्थितियों में पार्टी की सफलता सुनिश्चित की है.

बिहार (2010): एनडीए की भारी जीत (243 में से 206 सीटें)

लोकसभा चुनाव 2014: 40 में से 31 सीटें जीत

उत्तर प्रदेश (2022): लगातार दूसरी बार भाजपा की जीत सुनिश्चित की

हरियाणा (2024): तीसरी बार भाजपा की सरकार बनवाई

उत्तराखंड (2017): पार्टी को सत्ता में वापस लाने में अहम भूमिका

पश्चिम बंगाल (2021): नंदीग्राम पर जीत के लिए फोकस

धर्मेंद्र प्रधान की सबसे बड़ी ताकत उनका संगठन कौशल, शांत लेकिन प्रभावी बातचीत और जटिल राजनीतिक समीकरणों को हल करने की क्षमता है. बिहार चुनाव 2025 में एनडीए को एकजुट रखने और ‘डबल इंजन सरकार’ को मजबूत बनाने में उनकी रणनीतिक भूमिका निर्णायक साबित होगी.



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