तेलंगाना में पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए स्थानीय निकाय चुनावों में 42 प्रतिशत आरक्षण के विवाद ने अब राष्ट्रीय स्तर पर जोर पकड़ लिया है. राज्य सरकार आज सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने जा रही है, जिसमें तेलंगाना हाईकोर्ट के हालिया स्टे ऑर्डर को चुनौती दी जाएगी. हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को सरकारी आदेश (जीओ नंबर 9) पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जो बीसी आरक्षण को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने का प्रावधान करता था. इस फैसले से कुल आरक्षण 67 प्रतिशत हो जाता, जो सुप्रीम कोर्ट के 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन माना गया.
इस मुद्दे की पृष्ठभूमि में तेलंगाना के सामाजिक न्याय की लंबी लड़ाई छिपी है. 2014 में राज्य गठन के बाद से ही बीसी समुदायों की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं. 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर बीसी आरक्षण को बढ़ाया जाएगा. दिसंबर 2023 में सत्ता संभालते ही सरकार ने सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, रोजगार और राजनीतिक जाति सर्वेक्षण (एसईईईपीसी) कराया, जिसकी सिफारिशों पर आधारित दो विधेयक पारित किए गए. इनमें शिक्षा, नौकरियों और स्थानीय निकायों में 42 प्रतिशत बीसी आरक्षण का प्रावधान था.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया था
26 सितंबर 2025 को जारी जीओ ने इसे स्थानीय निकाय चुनावों (ग्राम पंचायत, मंडल परिषद और जिला परिषद) में लागू किया, जिसमें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 10 प्रतिशत भी शामिल है. हालांकि, विपक्षी दलों और कुछ याचिकाकर्ताओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट के ‘इंद्रा साहनी’ (मंडल आयोग) फैसले और ‘विकास किशनराव गवली’ मामले के उल्लंघन का आधार बनाया. उनका तर्क था कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, और राज्य ने ‘ट्रिपल टेस्ट’ (पिछड़ेपन की जांच, पर्याप्त प्रतिनिधित्व का आकलन और 50 प्रतिशत सीमा) का पालन नहीं किया. 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया, लेकिन 8-9 अक्टूबर की सुनवाई में हाईकोर्ट ने स्टे थमा दिया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह रुक नहीं रही, लेकिन अतिरिक्त 17 प्रतिशत बीसी कोटा सामान्य श्रेणी में परिवर्तित कर चुनाव कराए जाएं. इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने 29 सितंबर की अधिसूचना स्थगित कर दी, जिससे 23 अक्टूबर से शुरू होने वाले ग्रामीण स्थानीय निकाय चुनाव अनिश्चित हो गए.
‘हम सुप्रीम कोर्ट में मजबूत तर्कों के साथ पेश होंगे’
उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमारका, बीसी कल्याण मंत्री पोनम प्रभाकर और टीपीसीसी प्रमुख बी. माहेश कुमार गौड़ ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट में मजबूत तर्कों के साथ पेश होंगे. जाति सर्वेक्षण के आंकड़े साबित करेंगे कि बीसी समुदायों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है.” सरकार का दावा है कि इंद्रा साहनी का 50 प्रतिशत कैप शिक्षा-नौकरियों के लिए है, न कि स्थानीय निकायों के लिए, जहां 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों ने लचीलापन दिया है. यदि सुप्रीम कोर्ट अनुमति देता है, तो सरकार पूर्ण बहस सुनने को तैयार है.
बीसी संगठनों ने हाईकोर्ट के बाहर विरोध प्रदर्शन किए, जबकि विपक्षी दल बीआरएस और भाजपा ने सरकार पर ‘राजनीतिक स्टंट’ का आरोप लगाया. विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न केवल तेलंगाना बल्कि पूरे देश में आरक्षण बहस को प्रभावित करेगा. यदि सुप्रीम कोर्ट स्टे हटाता है, तो चुनाव समय पर हो सकते हैं; अन्यथा, सरकार को 42 प्रतिशत टिकट बीसी उम्मीदवारों को देने का नैतिक दबाव बनाना पड़ सकता है. फिलहाल, सभी की नजरें अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की पैरवी पर हैं.
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