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उपेंद्र राय एक मजदूर परिवार से हैं. एक दिन उनकी तबीयत खराब हो गई. डॉक्टर ने उन्हें बकरी का दूध पीने के लिए बोला. आसपास के गांव में बकरी के दूध के लिए काफी भटके, लेकिन उन्हें बकरी का दूध नहीं मिला.

छपरा जिले के अमनौर प्रखंड अंतर्गत सराय बॉक्स गांव निवासी उपेंद्र राय की कहानी काफी संघर्ष भरी और रोचक है. जिनकी कहानी पढ़कर और देखकर आपको विकट परिस्थिति में भी कुछ करने का हौसला बढ़ जाएगा.

उपेंद्र राय एक मजदूर परिवार से हैं. एक दिन उनकी तबीयत खराब हो गई. डॉक्टर ने उन्हें बकरी का दूध पीने के लिए बोला. आसपास के गांव में बकरी के दूध के लिए काफी भटके, लेकिन उन्हें बकरी का दूध नहीं मिला. उसके बाद उन्होंने मजदूरी से बचाए गए एक-एक रुपए से एक बकरी खरीदने का फैसला किया और बहुत जल्दी एक बकरी भी खरीद ली.

भगवान की कृपा से बकरी के दूध और दवा खाकर वह स्वस्थ हो गए. उसके बाद बकरियों की संख्या उनके यहां बढ़ती गई, जिस पर वह ध्यान देने लगे और बकरियों को चारा न देकर खेत में चराने लगे, जिससे उनके चारे का भी पैसा बच जाता था. फिलहाल इस समय उनके पास दो दर्जन बकरियां हैं. जिससे आज उनकी कमाई का भी जरिया अच्छा हो गया है.

उपेंद्र राय ने बताया कि मैंने मजदूरी कर एक-एक पैसा बचाकर दूध पीने के लिए बकरी खरीदी. अब उस बकरी के बच्चे को बचा के रखते हैं. एक बकरी से अब मेरा एक फॉर्म हो गया है. उन्होंने यह भी बताया कि बकरी को पर्याप्त मात्रा में मैं चारा नहीं दे पाता हूं.

उपेंद्र राय ने बताया कि मैं बकरियों को खेत में चरने के लिए खोल देता हूं. जिससे चारे का भी पैसा बच जाता है और जब समय मिलता है तो मजदूरी भी करने जाता हूं. लेकिन पहले की अपेक्षा बहुत कम ही मजदूरी करने का समय मिलता है. उन्होंने बताया कि बकरी के देखरेख में समय बीत जाता है. साल में दो से ढाई लाख रुपए इस फार्म से कामा लेता हूं. अब मुझे पहले की जैसा चिंता भी नहीं रहती है.
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