India US Relations: यूक्रेन वॉर की कोशिश में लगे अमेरिका ने भारत के ऊपर हाई टैरिफ लगा दिया है, जिसमें 25 प्रतिशत बैस टैरिफ तो वहीं 25 प्रतिशत रूस से तेल खरीदने की वजह से अतिरिक्त पैनाल्टी के तौर पर टैरिफ लगाया गया है. अमेरिकी हाई टैरिफ ने जहां एक तरफ भारत के एक्सपोर्ट को बुरी तरह प्रभावित किया है तो वहीं दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र के बीच संबंधों में भी खटास ला दिया है. ट्रंप के इस कदम के बाद हालांकि भारत ने जरूर अपनी रणनीति में बदलाव किया है.
दूसरी तरफ अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने भारत की तरफ से रूसी तेल खरीद को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि भारत की रूसी तेल की खरीद इंडियन इकोनॉमी का मूल आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि अब भारत अपनी ऊर्जा खरीद के स्रोतों में विविधता लाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. ग्रीर ने साफ किया कि भारत एक संप्रभु देश है और अपनी ऊर्जा नीति और इंटरनेशनल रिलेशंस के बारे में खुद फैसला करने का अधिकार रखता है.
ग्रीर ने न्यूयॉर्क के इकोनॉमिक क्लब में आयोजित एक वार्ता के दौरान कहा, “भारत हमेशा से रूस से इतना तेल नहीं खरीदता रहा है. रूस के साथ उसके मजबूत संबंध रहे हैं, लेकिन पिछले दो-तीन सालों में भारत ने उपभोग के साथ-साथ शोधन और दोबारा बेचने के लिए भी छूट पर रूसी तेल खरीदना शुरु किया है.”
तेल खरीदारी में विविधता
उन्होंने कहा कि यह भारत की इकोनॉमी का कोई आधारभूत या स्थायी हिस्सा नहीं है. उनका मानना है कि भारत ये समझ रहा है और अब अपनी ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है. ग्रीर ने आगे कहा कि यूएस किसी देश को ये निर्देश नहीं देता कि वे किसके साथ संबंध रखें या न रखें. अमेरिका किसी के ऊपर ये नहीं थोप रहे हैं कि वे किसके साथ व्यापार करें.
ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि भारत की रूस से क्रूड ऑयल की खरीद, यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है. भारत पर इस नए टैरिफ के प्रभाव को लेकर पूछे गए सवाल पर ग्रीर ने कहा कि यह कुछ सप्ताह पहले ही लागू हुआ है. उन्होंने बताया कि भारत का अमेरिका के साथ 40 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है- यानी भारत अमेरिका को जितना निर्यात करता है, उतना आयात नहीं करता.
उन्होंने आगे बताया कि ट्रंप प्रशासन के शुरुआती दिनों से ही अमेरिका और भारत के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत चल रही है. “यह अतिरिक्त 25% शुल्क रूस से तेल की खरीद में हालिया वृद्धि को लेकर लगाया गया है,” ग्रीर ने इस बात पर भी जोर दिया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने पर केंद्रित हैं.
भारत के साथ चीन पर भी दबाव
“हम पुतिन पर जितना संभव हो सके उतना दबाव बना रहे हैं. हमने अपने यूरोपीय सहयोगियों से भी बात की है — उनमें से कुछ अब भी रूसी तेल खरीद रहे हैं, जो काफी विरोधाभासी है. हम सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि चीन से भी इस पर बात कर रहे हैं. हमें यह युद्ध समाप्त करना ही होगा,”
उन्होंने कहा.
दूसरी ओर, भारत का आधिकारिक रुख यह है कि उसकी ऊर्जा खरीद उसके राष्ट्रीय हित और बाजार की परिस्थितियों से तय होती है. फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए और उसकी आपूर्ति सीमित कर दी, तब भारत ने छूट पर रूसी तेल खरीदना शुरू किया.
अमेरिका भारत की रूसी तेल खरीद को लेकर चिंता जताता है, लेकिन यह भी स्वीकार करता है कि भारत अपनी स्वतंत्र नीति के तहत फैसले लेता है. वहीं भारत का कहना है कि उसकी ऊर्जा नीति आर्थिक व्यावहारिकता और राष्ट्रीय हितों से प्रेरित है, न कि किसी राजनीतिक दबाव से.
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