Sanwariya Seth: श्रीकृष्ण के सांवले रूप को सांवलिया सेठ कहा जाता है. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में सांवलिया सेठ का मुख्य मंदिर मंडफिया, भादसोड़ा और बांगुड गांव में स्थित है.
प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्त सांवलिया सेठ के दर्शन करने आते हैं. आइए जानते हैं कि सांवलिया सेठ कौन हैं?
सांवलिया सेठ की बड़ी भक्त मीराबाई
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मीरा बाई सांवलिया सेठ की बड़ी भक्त थी, जिन्हें वह गिरधर गोपाल कहकर भी पुकारती थीं. मीरा बाई संतों के साथ घूम घूमकर भक्ति करती थी. उनके पास श्री कृष्ण की एक मूर्ति थी.
दयाराम नाम के एक संत के पास भी एक श्रीकृष्ण की मूर्ति थी. कहा जाता है कि, जब औरंगजेब की सेना मंदिर को ध्वस्त करते हुए मेवाड़ पहुंची, तो वहां पर मौजूद मुगल सेना को कृष्ण की उन मूर्तियों के बारे में पता चला और वह उन्हें काफी ढूंढने लगी.
सपने में दिखाई दी जमीन में 4 दबी हुई मूर्तियां
इस बात की जानकारी जैसे ही दयाराम को पता चली, उन्होंने बांगुड-भादसौड़ा की छापर में एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर उन मूर्तियों को छिपा दी. सालों से जमीन में दबी इन मूर्तियों का सपना मंडफिया गांव के निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के एक ग्वाले को आया.
उसने सपने में देखा कि भादसोड़ा बांगूड गांव की सीमा के पास भगवान कृष्ण की 4 मूर्तियां जमीन में दबी हुई है.
सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा गांव में ले जाया गया
जब अगले दिन सपने के मुताबिक निश्चित जगह पर खुदाई की गई तो भोलाराम समेत सभी गांव वाले चौंक उठे. वहां जमीन से एक के बाद एक 4 मूर्तियां निकली. देखते ही देखते ये खबर आग की तरह आसपास के सभी गांव में फैल गई और सभी लोग इन मूर्तियों को देखने के लिए एकत्र होने लगे.
इसके बाद गांव के सभी लोगों ने सर्वसम्मति के बाद चारों मूर्तियों में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा गांव ले गई. उस समय भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे. उनकी निर्देश में उदयपुर मेवाड़ राज परिवार के भींडर ठिकाने की तरफ से सांवलिया सेठ जी का मंदिर बनवाया गया.
चौथी मूर्ति को गड्ढे में दबा दिया गया
यह मंदिर 1840 के आस-पास बनाया गया था, जिस वजह से इस मंदिर का नाम प्राचीन सांवलिया सेठ मंदिर पड़ा. 4 मूर्तियों में से मंझली मूर्ति को खुदाई वाली जगह पर ही स्थापित किया गया. सबसे छोटी मूर्ति को भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जाया गया, जहां उन्होंने अपने घर के आंगन में इसे स्थापित किया.
तीन मूर्तियों के अलावा चौथी मूर्ति को वापस गड्ढे में दबा दिया गया, क्योंकि वो मूर्ति खंडित हो चुकी थी.
व्यापारियों के बीच सांवलिया सेठ की ख्याति
सांवलिया सेठ के बारे में कहा जाता है कि, नानी बाई का मायरा करने के लिए खुद श्रीकृष्ण ने वह रूप धारण किया था. व्यापार से जुड़े लोगों में उनकी ख्याति इतनी ज्यादा है कि, लोग अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर भी बनाते हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब सुदामा श्री कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका आए और जब उनके सामने महल में छप्पन भोग परोसे गए तो सुदामा ने यह कहकर खाना खाने से मना कर दिया, क्योंकि उनकी पत्नी वसुंधरा और बच्चे भूखे होंगे.
यह सुनकर श्रीकृष्ण उसी वक्त दूसरा रूप लेकर सुदामा के गांव पहुंच जाते हैं और सांवले शाह बन जाते हैं.
एक मुनादी बैलगाड़ी में खाना की ढेर सारी सामग्री भरकर ढोल ताशा बजाकर मुनादी करते हैं कि, सुनो सुनो… ठाकुर सांवले शाह सेठजी के घर पोते ने जन्म लिया है.
इस खुशी के मौके पर एक महायज्ञ का अनुष्ठान किया गया, जो दस दिनों तक चलेगा. ठाकुर सांवले शाह ने घोषणा करते हुए कहा है कि, 10-10 कोस तक ब्राह्मण परिवारों को तीन समय का भोजन कराने के साथ मिष्ठान दिया जाए. यह सुनकर वसुंधरा खुश हो गई.
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