
हिंदू धर्म में हर पर्व और व्रत का अपना विशेष धार्मिक महत्व होता है. इन्हीं में एक पर्व है नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व दीपावली से एक दिन पहले, कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन मृत्य के देवता यमराज और हनुमान जी की पूजा की जाती है.

धार्मिक मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा और स्मरण करने से मृत्यु का भय कम होता है और जीवन में अकाल मृत्यु की आशंका से रक्षा मिलती है. इससे न केवल नकारात्मक शक्तियों से बचाव होता है, बल्कि जीवन में दीर्घायु, मानसिक शांति और समृद्धि भी आती है.

पौराणिक कथा के अनुसार गेहूं के आंटे का दीपक या मिट्टी का दीपक जलाना बेहद शुभ माना जाता है. इसके अलावा नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके पूजा करने के बाद शाम को घर के मुख्य द्वार के बाहर यम दीपक हमेशा दक्षिण दिशा में जलाना चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा बाहर ही रह जाती है.

नरक चतुर्दशी के दिन यमलोक के देवता कहलाने वाले यमराज की पूजा की जाती है, इसलिए इस दिन किसी भी जीव की हत्या नहीं करें. साथ ही इस दिन मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए, और बाल व नाखून नहीं कटनी चाहिए. कहा जाता है कि इस दिन घर की दक्षिण दिशा को भूल कर भी गंदा न रखें, क्योंकि यम की दिशा दक्षिण मानी गई है. इस दिन ये गलतियां करने से मुक्ति में मुश्किल हो सकती हैं.

नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण की पूजा करना भी शुभ माना जाता है. क्योंकि इस भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था. नरकासुर अपने प्रजा का खूब अत्याचार करता था. इसलिए भगवान कृष्ण ने जब नरकासुर का वध किया तो अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर जीत हुई थी.

मान्यता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है. यह त्यौहार जीवन की सुरक्षा, परिवार की रक्षा और खुशहाती का भी प्रतीक माना जाता है. इतना ही नहीं यह दिन जीवन और मृत्यु के गहरे रहस्यों को भी याद दिलाता है.
Published at : 12 Oct 2025 08:19 PM (IST)
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