Ahoi Ashtami Katha: संतान के लिए रक्षा कवच है अहोई अष्टमी व्रत, लेकिन इस कथा के बिना अधूरी है पूजा

Spread the love



Ahoi Ashtami 2025 Katha in Hindi: कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में पड़ने वाली अहोई अष्टमी व्रत संतान रक्षा के लिए बहुत ही पुण्यदायी व्रत मानी जाती है. इस तिथि पर माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा करने का विधान है. इस साल अहोई अष्टमी का व्रत आज सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को है.

अहोई अष्टमी के दिन माताएं सूर्योदय से लेकर तारों के उदित होने तक व्रत रखती हैं. इस दिन शाम में शुभ मुहूर्त में माता अहोई की पूजा की जाती है. अहोई अष्टमी का दिन केवल उत्सव या धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मातृत्व प्रेम, करुणा, त्याग और संतान की दीर्घायु के लिए किया जाने वला दिव्य व्रत है.

बता दें कि, आज अहोई अष्टमी पर पूजा के लिए केवल सवा घंटे का ही समय मिलेगा. पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 52 मिनट से 7 बजकर 8 मिनट कर रहेगा. माताएं इस समय में पूजा-पाठ कर लें. साथ ही अहोई अष्टमी पर साहूकार की बहू से जुड़ी पौराणिक कथा का पाठ भी जरूर करें. इस कथा को पढ़े या सुने बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.   

अहोई अष्टमी की व्रत कथा

कथा के अनुसार- एक नगर में एक साहूकार रहता था. उसके 7 बेटे और एक बेटी थी. सभी बेटों की शादी हो गई थी. घर पर एक बेटी भी थी. घर पूरी तरह से संपन्न था. एक बार दिवाली से कुछ दिन पहले साहूकार की बहुएं और बेटी घर को सजाने के लिए जंगल में मिट्टी लाने गई. मिट्टी खोदते समय बेटी से अनजाने में कुदाल से एक सेही (झांऊमूसा) के 7 बच्चों की मृत्यु हो गई. सेही माता क्रोधित हो गई और उसने कहा कि, अब मैं तेरी कोख बांधूगी.

साहूकार की ननद ने अपनी भाभियों से कहा कि, तुमसे को अपनी कोख बंधवा लो. लेकिन सभी भाभियों ने मना कर दिया. आखिरकार सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई. इस कारण छोटी बहू को कोई संतान नहीं हुई. अगर संतान होती भी तो, सातवें दिन मर जाती. इस तरह एक-एक कर सात संतानों की मृत्यु हो गई. आखिरकार दुखी होकर बहू ने एक पंडित को सारी बातें बताई.

पंडित ने बहू को सुरही गाय की सेवा करने को कहा. छोटी बहू श्रद्धाभाव से सुरही गाय की सेवा करने लगी. एक बार बहू सुरही गाय को स्याहु के पास लेकर जा रही थी, तभी बहू की नजर एक सांप पर पड़ी, जो एक गरुड़ के बच्चे को डसने जा रहा था. गरुड़ के बच्चे को बचाने के लिए बहू ने सांप को मार दिया. इतने में गरुड़ भी वहां पहुंच जाती है. अपने बच्चे को सही सलामत देख गरुड़ बहुत खुश होती है और वह सुरही गाय समेत बहू को स्याहु के पास पहुंचा देती है. इसके बाद स्याहु छोटी बहू को सात पुत्र और सात बहु होने का वरदान देती है. सात पुत्र और पुत्रवधू के बाद छोटी बहू का घर भी हरा-भरा हो जाता है.

इसके बाद साहूकार की बहू ने खुशी-खुशी पूरी श्रद्धाभाव से अहोई अष्टमी का व्रत किया. उसने कार्तिक कृष्ण की अष्टमी पर दीवार में साही और उसके सात बच्चों की छवि बनाई, दीप जलाए और कलश स्थापिक किया. शाम में तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूर्ण किया.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *