बिहार में सियासी पारा दिन प्रतिदिन चढ़ता जा रहा है। इस बीच अमर उजाला का चुनावी रथ ‘सत्ता का संग्राम’ का दूसरा पड़ाव आज सारण में है। 13 अक्तूबर की सुबह, टीम ने सारण के मतदाताओं से चाय पर चर्चा के दौरन खुलकर बातचीत की। आइये जानते हैं।
चर्चा के दौरान कृष्णा कुमार ने कहा कि अभी तक जनसुराज के अलावा किसी भी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की है। अब बाकी पार्टियों को चाहिए वो अपने-अपने प्रत्याशियों का जल्द एलान करे। उन्होंने कहा कि यह बिहार की धरती है, यहां चुनाव में जाति के साथ-साथ चुनाव चिन्ह का भी बड़ा प्रभाव होता है। उदाहरण के तौर पर कमल और लालटेन के निशान पर किस प्रत्याशी को उतारा गया है, इसी आधार पर चुनावी रणनीति तय की जाती है।
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कृष्णा ने बताया कि छपरा में निर्दलीय प्रत्याशियों की पकड़ अन्य जिलों की तुलना में कमजोर रहती है। यहां वोटिंग मुख्य रूप से पार्टी के आधार पर होती है। छपरा के स्थानीय मुद्दों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जनता बदलाव चाहती है, लेकिन फिलहाल जातिगत बंधनों में जकड़ी हुई है। हर जाति के लोग अपनी जाति के उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं। अगर जाति से ऊपर उठकर देखा जाए, तभी छपरा का वास्तविक विकास संभव है। यह जयप्रकाश नारायण की धरती है, जिसे विकास की सख्त ज़रूरत है, लेकिन फिलहाल विकास पर ‘अवकाश’ लग गया है।
पुलिस हमें अपराधी की नजर से…
वहीं, पंकज नामक एक अन्य सहभागी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में जनता चाहती है कि चोरी की सरकार न बने, अपराध पर लगाम लगे और कानून व्यवस्था मजबूत हो। उन्होंने कहा कि 2020 में लोगों ने भाजपा के सीएन गुप्ता को इसी उम्मीद में वोट दिया था कि अपराध रुकेगा। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि अगर किसी की बाइक चोरी हो जाए और वह थाने में शिकायत करने जाए, तो पुलिस उसे ही अपराधी की नजर से देखने लगती है।
मुफ्त की रेवड़ियां नहीं चाहिए
चर्चा में शामिल एक अन्य युवक ने कहा कि इस बार हम बदलाव करेंगे। हमें मुफ्त की रेवड़ियां नहीं चाहिए, हमें रोजगार चाहिए। हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो, इसके लिए विकास और नौकरी सबसे बड़ी ज़रूरत है। छपरा में आज तक विकास नाम की कोई चीज़ नहीं हुई, नेता केवल वादे करते रहे हैं, काम के नाम पर कुछ नहीं हुआ।”
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