
मान्यता है कि अगर कोई मनोकामना पूरी नहीं हो रही है या असाध्य रोग है तो कोसी भरने का संकल्प लिया जाता है, जिससे मनोकामनाएं पूरी होने के साथ ही कष्टों से मुक्ति भी मिलती है. इससे संतान को दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है.

यह पूजा डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर के आंगन या छत पर की जाती है. गन्ने से बने छत्र के नीचे मिट्टी का हाथी, घड़ा और अन्य पूजन सामग्री रखी जाती है. रातभर दीप जलाकर और छठी मैया के गीत गाये जाते हैं.

कोसी बनाने की शुरुआत छठ पूजा की टोकरी को एक स्थान पर रखकर की जाती है. इसके चारों ओर चार या सात गन्नों की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. गन्ने को खड़ा करने से पहले उसके ऊपरी हिस्से पर लाल कपड़े में ठेकुआ और फल रखे जाते हैं.

गन्ने के छत्र के अंदर मिट्टी का हाथी रखा जाता है. उसके ऊपर एक घड़ा रखा जाता है और हाथी पर सिंदूर लगाया जाता है, जो शुभता का प्रतीक माना जाता है.

घड़े में फल, ठेकुआ, सुथनी, मूली और अदरक जैसी पूजन सामग्री रखी जाती है. कुछ लोग कोसी के अंदर 12 या 24 दीपक जलाते हैं, जिससे वातावरण पवित्र हो जाता है.

सारी तैयारी के बाद घर की महिलाएं एक साथ बैठ कर पारंपरिक छठ गीत गाती हैं. कोसी में धूप जलाकर हवन किया जाता है और छठी मैया से मनोकामनाओं की पूर्ति और परिवार के सुख-समृद्धि की कामना की जाती है.
Published at : 13 Oct 2025 04:50 PM (IST)
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