Eco Driving: अब ईको ड्राइविंग से होगी पेट्रोल की बचत और घटेगा प्रदूषण – eco driving can reduce petrol diesel fuel consumption in vehicle and air pollution by crri research dlpg

Spread the love


नई दिल्‍ली. अगर आप भी कार ड्राइव करते हैं और पेट्रोल व डीजल (Petrol and Diesel) की कीमतों के आसमान छूने से परेशान हैं, या फिर पुरानी हो चुकी कार के प्रदूषण (Pollution) फैलाने के बावजूद आप उसे बेचकर या छोड़कर नई बिना प्रदूषण वाली इलेक्ट्रिक कार (Electric Car) खरीदने की स्थिति में नहीं हैं तो यह खबर आपके लिए बहुत उपयोगी हो सकती है. वैज्ञानिकों की ओर से बताई गई ईको-व्‍हीकल ड्राइविंग (Eco Driving) या पर्यावरण ड्राइविंग से न केवल आप पुरानी कार के बावजूद ईंधन (पेट्रोल-डीजल) की जबरदस्‍त बचत कर पाएंगे बल्कि प्रदूषण भी कम फैलेगा और पर्यावरण (Environment) को नुकसान नहीं होगा.

देशभर में प्रदूषण को देखते हुए अब इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रमोट किया जा रहा है. देश के कई राज्‍य इलेक्ट्रिक व्‍हीकल (EV) को लेकर अपनी-अपनी पॉलिसी भी जारी कर चुके हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि नए प्रदूषण मुक्‍त वाहनों (Pollution Free Vehicle) पर जाने में अभी कई साल लगेंगे ऐसे में ऐसे तरीके या तकनीक की जरूरत है जो परंपरागत रूप से चल रहीं पेट्रोल और डीजल की गाड़‍ियों को भी ईको-फ्रेंडली बना सके और इसमें कम से कम ईंधन का उपयोग हो.

Electric Vehicle, eco driving,
अब इलेक्‍ट्रिक व्‍हीकल पर स्विच करने से ही नहीं बल्कि पेट्रोल-डीजल की गाड़‍ियों में ईको-ड्राइविंग से होगी ईंधन और पर्यावरण की बचत.
हाल ही में सीएसआईआर-सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्‍टीट्यूट (CSIR-CRRI) की ओर से रिसर्च की गई है जिसमें बताया गया है कि परंपरागत गाड़‍ियों के इस्‍तेमाल के दौरान अगर ईको-ड्राइविंग पर फोकस किया जाए तो ईंधन (Fuel) और पर्यावरण दोनों को नुकसान से बचाया जा सकता है. रिसर्च करने वाले इंस्‍टीट्यूट के सीनियर प्रिंसिपल वैज्ञानिक और प्रोफेसर एसीएसआईआर ट्रांस्‍पोर्टेशन प्‍लानिंग एंड एनवायरनमेंट डॉ. रविंद्र कुमार कहते हैं कि अब पर्यावरण और तेल कीमतों (Oil Prices) को देखते हुए इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच किया जा रहा है लेकिन जो गाड़‍ि‍यां देश में पहले से चल रही हैं उन पर भी तकनीक का इस्‍तेमाल करना होगा नहीं तो एक तरफ चीजें ठीक होंगी और दूसरी तरफ हालात गड़बड़ हो जाएंगे.

ईको ड्राइविंग से होगी 11 से 50 फीसदी तक की बचत

हालिया रिसर्च में सामने आया है कि ईको-ड्राइविंग व्‍यवहार और प्रशिक्षण प्रथाओं से ईंधन अर्थव्‍यवस्‍था (Fuel Economy) में 11-50 फीसदी तक का सुधार हो सकता है. इसके अलावा सीओटू के उत्‍सर्जन में भी भारी कमी हो सकती है. इससे पर्यावरण के अलावा सामाजिक लाभ भी हैं. भारत में एक टन सीओटू (CO2) उत्‍सर्जन से अर्थव्‍यवस्‍था को 86 डॉलर का नुकसान होता है.

ईको-ड्राइविंग से ऐसे होती है पेट्रोल-डीजल की बचत

डॉ. रविंद्र कुमार बताते हैं कि ईको-ड्राइविंग या ग्रीन ड्राइविंग (Green Driving) एक पद्धति है. जिसमें कार की गति का विशेष ध्‍यान दिया जाता है. इससे ईंधन की भारी बचत होती है. रिसर्च में बताया गया है कि गाड़ी की स्‍पीड जितनी अधिक कम या जितनी अधिक ज्‍यादा होगी तो ईंधन की खपत सबसे ज्‍यादा होगी. अगर कोई कार 10 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है तो वह 100 किलोमीटर तक पहुंचने में 14 लीटर ईंधन लेगी. जबकि यही कार अगर 120-140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है तो इतनी ही दूरी तय करने में 14-16 लीटर ईंधन लेगी.

ev, eco driving
ईको-ड्राइविंग व्‍यवहार और प्रशिक्षण प्रथाओं से ईंधन अर्थव्‍यवस्‍था में 11-50 फीसदी तक का सुधार हो सकता है.
जबकि अगर ईको-ड्राइविंग की गति को देखा जाए तो यह 50-80 प्रति किलोमीटर है. अगर कोई भी व्‍यक्ति इस गति पर अपनी कार को स्थिर रखता है तो 100 किलोमीटर तक जाने में सबसे कम 7 से साढ़े सात लीटर ईंधन की जरूरत होगी जो कि बाकी स्‍पीड में लगे ईंधन का 50 फीसदी है. गाड़ि‍यों के मीटर में इसे ही ग्रीन गति के रूप में दर्शाया भी जाता है लेकिन अक्‍सर लोग इसे ऐसे समझते हैं कि दुर्घटनाओं की वजह से इसे ग्रीन सिग्‍नल कहा गया है. जबकि इसका मतलब ईंधन की खपत की बचत से है.

क्‍या है ईको-ड्राइविंग

डॉ. रविंद्र कहते हैं कि ड्राइविंग का एक चक्र होता है. पहले गाड़ी जीरो पर होती है यानि रुकी हुई होती है इसे हम सुस्‍ती या आइडलिंग कहते हैं. इसके बाद शुरू होता है एक्‍सेलरेशन. गाड़ी को एक्‍सलेरेट करने के बाद अगर सड़क अच्‍छी होती है तो हम क्रूज करते हैं. यहां ध्‍यान देने वाली बात है कि क्रूजिंग के दौरान हम गाड़ी को एक ही आदर्श गति पर रखें. 50-80 त‍क ग्रीन स्‍पीड होने के बावजूद अगर कार को 45-65 के बीच में ही चलाया जाए तो इसका प्रभाव और भी अच्‍छा होता है.

इसके बाद हम देखते हैं कि अगर कहीं कोई गड्ढ़ा या ऐसी जगह आई जहां हमें गाड़ी को धीमा करना होगा तो धीरे-धीरे हम कार को डिसेलरेट करते हैं और फिर धीरे-धीरे कार को बंद करते हैं. कई जगह होता ये है कि हड़बड़ी और जल्‍दबाजी के चलते लोग ड्राइविंग के इन चक्रों को भी जल्‍दबाजी में इस्‍तेमाल करते हैं. जिसका प्रभाव कार के इंजन और अन्‍य पार्ट पर पड़ता है और ग्रीन हाउस गैसेज का उत्‍सर्जन बढ़ जाता है. डॉ. रविंद्र कहते हैं कि कोई व्‍यक्ति कार या कोई चौपहिया वाहन चलाता है तो उसे इन चारों चक्रों से गुजरना पड़ता है. इस दौरान ध्‍यान रखने वाली बात होती है कि इन चक्रों से गुजरने के बाद गाड़ी की गति को ग्रीन स्‍पीड तक ले जाया जाए और वहीं स्थिर रखा जाए.



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *