मुगल इतिहास में जब भी जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर का नाम लिया जाता है तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में पानीपत की लड़ाई और मुगल साम्राज्य की स्थापना की तस्वीर उभरती है, लेकिन बाबर सिर्फ एक विजेता नहीं था वह एक कवि, लेखक, कलाकार और संवेदनशील विचारक भी था.
1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर उसने भारत में एक नई सल्तनत की नींव रखी, लेकिन उसकी आत्मकथा बाबरनामा यह साबित करती है कि उसके भीतर एक ऐसा मनुष्य था, जो अपनी असफलताओं, भावनाओं और जीवन संघर्षों को ईमानदारी से स्वीकार करता था.
बाबर के जीवन में प्रेम और विरह
बाबर की आत्मकथा में उनके भावनात्मक पहलू भी झलकते हैं. उसने अपनी चचेरी बहन आयशा से निकाह किया, लेकिन यह निकाह असंतोषजनक रहा. उसकी आत्मकथा में एक प्रसंग आता है, जिसमें उसने लिखा कि उर्दू बाजार में बाबरी नाम का एक लड़का था. उसी के प्रति मेरा मन विचलित हुआ और मैं खुद को खो बैठा. वह लिखता है कि अगर वह सामने आता तो मैं शर्म से निगाहें नहीं मिला पाता, न आने पर शिकायत भी नहीं कर सकता था.
बाबरनामा आत्मकथा में झलकता इंसान और शासक
बाबर की आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (या बाबरनामा) में उसने न केवल अपने शासन और युद्धों का वर्णन किया है, बल्कि अपने भीतर के अकेलेपन और संघर्षों को भी उकेरा है. उसने बाबरनामा में जिक्र किया है कि जितने दिन मैं ताशकंद में रहा, उतने दिन बहुत दुख और तंगहाली में बीते. देश हाथ से जा चुका था, उम्मीद भी नहीं बची थी और जो नौकर मेरे साथ थे, वे भी गरीबी के कारण साथ छोड़ गए थे. बाबर का एक शेर उसकी मानसिक स्थिति को दर्शाता है. ‘न तो मेरे पास अब यार दोस्त हैं, न ही मेरे पास देश और धन है. मुझे एक पल का चैन नहीं है, यहां आना मेरा फैसला था, पर अब वापस जाना भी मुमकिन नहीं.’
भारत की ओर रुख और तैमूर की विरासत
इतिहासकार प्रोफेसर निशांत मंजर के अनुसार, बाबर का भारत की ओर झुकाव केवल महत्वाकांक्षा नहीं था, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक आवश्यकता थी. काबुल में राजस्व के सीमित साधन थे और शासन के लिए धन की सख्त जरूरत थी. इसलिए बाबर ने कई बार भारत के पश्चिमी हिस्से पर आक्रमण किया, लेकिन उसका भारत आने के पीछे एक भावनात्मक तत्व भी था. कहते हैं कि एक वृद्ध महिला ने बाबर को तैमूर की भारत विजय की कहानियां सुनाईं, जिससे उनके मन में तैमूरी साम्राज्य को पुनर्जीवित करने का सपना पनपा.
शिक्षा, साहित्य और कला के प्रेमी बाबर
बाबर का जन्म फरगना की राजधानी अंदिजान में हुआ था. चंगेज खान और तैमूर लंग जैसे उनके पूर्वज पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन बाबर शिक्षा और विद्या को शासन का आधार मानता था. उसने इस्लामी परंपरा के अनुसार चार वर्ष और चार दिन की उम्र से शिक्षा शुरू की थी. उसका साहित्यिक योगदान इतना प्रभावशाली था कि इतिहासकार स्टीफन डेल ने अपनी किताब “गार्डन ऑफ पैराडाइज” में लिखा कि बाबर की लेखन शैली उतनी ही आधुनिक और जीवंत है जितनी आज के युग की.” उनकी गद्य शैली को कई विशेषज्ञों ने गालिब से भी पहले उर्दू गद्य का प्राण कहा है.
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