अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुतक्की ने रविवार (12 अक्टूबर 2025) को नई दिल्ली में एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने की घोषणा की है. इस बार उन्होंने महिला पत्रकारों को भी आमंत्रित किया है. यह कदम उस कड़ी आलोचना के बाद उठाया गया है, जो उन्हें 10 अक्टूबर को हुई पिछली प्रेस वार्ता के दौरान महिला पत्रकारों को बाहर रखने के कारण झेलनी पड़ी थी. उस कार्यक्रम की तस्वीरें जब सोशल मीडिया पर सामने आईं तो कई भारतीय पत्रकार संगठनों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने इसे लैंगिक भेदभाव का शर्मनाक उदाहरण बताया.
10 अक्टूबर को दिल्ली में हुई मुतक्की की पहली प्रेस वार्ता में केवल पुरुष पत्रकारों को शामिल किया गया था. महिला पत्रकारों को, ड्रेस कोड का पालन करने के बावजूद, कार्यक्रम स्थल में प्रवेश नहीं दिया गया था. इस घटना के बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया और इंडियन विमेंस प्रेस कॉर्प्स (IWPC) ने संयुक्त रूप से इस निर्णय की निंदा की. दोनों संगठनों ने बयान जारी करते हुए इसे बेहद भेदभावपूर्ण और अस्वीकार्य बताया. उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी राजनयिक विशेषाधिकार या वियना कन्वेंशन के तहत ऐसे भेदभाव को उचित नहीं ठहराया जा सकता.इस विरोध के बाद अब मुतक्की की टीम ने रविवार की प्रेस वार्ता के लिए नए निमंत्रण भेजे हैं और इसे समावेशी कार्यक्रम बताया है.
भारत ने किया स्पष्ट आयोजन में कोई भूमिका नहीं
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने शनिवार को बयान जारी कर यह स्पष्ट किया कि नई दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं थी. मंत्रालय ने बताया कि पत्रकारों को आमंत्रण मुंबई स्थित अफगान महावाणिज्य दूत की ओर से भेजे गए थे और यह कार्यक्रम अफगान दूतावास परिसर में हुआ था, जो भारत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. MEA ने यह भी कहा कि यह कार्यक्रम पूरी तरह अफगान पक्ष की तरफ से आयोजित था और भारत का इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं था.
तालिबान शासन में महिलाओं पर लगातार बढ़ते प्रतिबंध
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने 2021 में सत्ता संभालने के बाद से महिलाओं पर कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. महिलाओं के काम करने, उच्च शिक्षा प्राप्त करने और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने पर लगातार रोक लगाई जा रही है.हाल ही में तालिबान ने न केवल महिलाओं को कई रोजगारों से हटाया है, बल्कि विश्वविद्यालयों में महिला लेखिकाओं की तरफ से लिखी गई पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके साथ ही लैंगिक अध्ययन, मानवाधिकार, और विकास संबंधी 18 पाठ्यक्रमों को भी बंद कर दिया गया है. इन घटनाओं के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान की आलोचना लगातार बढ़ रही है.
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