कठिन कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार एक परिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से इंसाफ मिला. कोर्ट ने पिता की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग कर रहे बेटे के पक्ष में फैसला सुनाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को उसे नौकरी देने से इनकार कर दिया, लेकिन परिवार को हुई अनावश्यक परेशानियों के लिए एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया.
इस मामले की शुरुआत उस वक्त हुई जब 10 मई 2016 को पिता को नौकरी से बाहर कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने केन्द्रीय लेबर कोर्ट में अपील की. लेबर कोर्ट ने उन्हें बकाया भुगतान के साथ ही बैंक में बहाली का आदेश दिया.
लंबी चली कानूनी लड़ाई
हालांकि, बैंक ने लेबर कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की (केस नंबर: C-53989/2016). इस बीच, पिता 8 दिसंबर 2019 को निधन हो गए. इसके बाद उनकी मां ने 24 जनवरी 2020 को बेटे के लिए अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग की. इसके बाद 4 अप्रैल 2025 को एक और आवेदन दाखिल किया गया.
बेटा ने कोर्ट में कहा कि उसने कई वर्षों तक अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए अपील की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद कोर्ट से न्याय की गुहार लगाई.
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला:
25 सितंबर 2025 को हाईकोर्ट ने बेटे के लिए अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग तो खारिज कर दी, लेकिन परिवार को हुई परेशानियों के लिए SBI को एक लाख रुपये देने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया कि लंबी अवधि के अंतराल के बाद केवल प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन) दाखिल करने से समय-सीमा से बाहर हुए दावे को फिर से जीवित या वैध नहीं किया जा सकता. महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायाधीश ने यह जोर देकर कहा कि अनुकंपा नियुक्ति किसी व्यक्ति का जन्मसिद्ध या वंशानुगत अधिकार नहीं है, और लंबी अवधि तक निष्क्रिय रहना अनुकंपा नियुक्ति के मूल उद्देश्य और भावना के खिलाफ है.
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