‘दृश्यम 3’ का एक सीन!…(फोटो साभार- file photo)
पॉस्ट-पैंडेमिक सच्चाई
लेटेस्ट FICCI-EY मीडिया एंड एंटरटेनमेंट रिपोर्ट (2024) देखिए तो साफ है—हिंदी सिनेमा पर ऑडियंस का खर्चा 2022 से करीब 13% गिर गया है. उधर, तमिल, तेलुगु और मलयालम जैसी रीजनल इंडस्ट्रीज थिएट्रिकल और OTT दोनों में उछाल मार रही हैं. रिपोर्ट कहती है, 2023 में 1,796 फिल्में रिलीज हुईं, 2024 में बढ़कर 1,823 हो गईं—लेकिन ग्रोथ का फायदा ओरिजिनल स्क्रिप्ट्स को मिल रहा है, वो भी उन फिल्मों को जो सोशल, इमोशनल या कल्चरल थीम्स छूती हैं. फॉर्मूला वाली स्टोरीज अब लगातार पीछे छूट रही हैं. ‘हाउसफुल 5’ से लेकर ‘बागी 3’ तक की असफलता इसे साफ तौर पर बयां करती है. इसके पीछे कारणों को समझने जाएं तो असली कारण हैं OTT प्लेटफॉर्म्स, जिन्होंने सबके लिए दरवाजे खोल दिए. दस साल पहले हिंदी ऑडियंस को पता ही न चलता कि फिल्म कॉपी हुई है. लेकिन आज सबने असली कंटेंट नेटफ्लिक्स या प्राइम पर पहले ही देख लिया है.
प्रोड्यूसर्स का लॉजिक: बिजनेस है, आर्ट नहीं
प्रोड्यूसर की नजर से रीमेक बिजनेस डिसीजन है—स्टोरी पहले काम कर चुकी, तो दोबारा चलेगी. स्क्रिप्ट सस्ती, प्रोडक्शन रिस्क कम, मार्केटिंग आसान. लेकिन 2024-25 में ये फॉर्मूला फ्लॉप दिखाने लगा. ‘शहजादा’, ‘सरफिरा’ जैसी हाई-प्रोफाइल रीमेक—स्ट्रॉन्ग मार्केटिंग के बावजूद फ्लॉप रहीं. ‘देवा’ भी इसी लिस्ट में शामिल है. बॉक्स ऑफिस इंडिया की 2024 एनालिसिस कहती है, पॉस्ट-पैंडेमिक 25 रीमेक फिल्मों में से 23 फ्लॉप या अंडरपरफॉर्म हो गईं. एवरेज रिटर्न्स 2019 के मुकाबले 40% ड्रॉप.

OTT ने कैसे उलट दिया सिनेमा का मतलब?
2021 की RBSA एडवाइजर्स रिपोर्ट प्रोजेक्ट करती है—इंडिया का OTT मार्केट 2021 के 1.5 बिलियन से 2030 तक 12.5 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. ये ग्रोथ फिल्में देखने के तरीके को बदल सकती है. इसमें सबसे बड़ा फायदा है कि अब भाषा की बाध्यता खत्म हो गई है. मलयालम की रियलिज्म, यूरोपियन नैरेटिव्स, कोरियन एस्थेटिक्स, दर्शकों को सबकुछ देखने को मिल रहा है. बॉलीवुड का स्टैंडर्ड पैटर्न जैसे ग्लॉसी रोमांस, पहले से समझ आने वाले कहानी के मोड़, लंबी रनटाइम—पुराना लगने लगा.
2024 की YouGov इंडिया सर्वे में 68% अर्बन रिस्पॉन्डेंट्स ने कहा, वो “सबटल एंड रियलिस्टिक” स्टोरीटेलिंग प्रेफर करते हैं, न कि “लार्जर-दैन-लाइफ” एंटरटेनमेंट. यही वजह कि ‘सैयारा’ जैसी स्मॉल-बजट रोमांटिक ड्रामा बिना बड़े स्टार्स के 2025 की सबसे प्रॉफिटेबल हिंदी फिल्म्स में शुमार हो गई. मिड-2025 में यश राज फिल्म्स ने डेब्यूएंट्स आहान पांडे और अनीता पड्डा के साथ ये फिल्म रिलीज की, जिसे कोई हाइप नहीं दिया गया, कोई फ्रैंचाइजी लिंक नहीं, फिर भी ग्लोबली इस फिल्म ने 100 करोड़ क्रॉस किया. वर्ड-ऑफ-माउथ और इमोशनल कनेक्ट ने कमाल किया.
हालांकि सैयारा पर भी कॉरियन फिल्म के रीमेक होने का आरोप लगा, लेकिन ‘सैयारा’ में अलग हटकर था इसका ट्रीटमेंट. ज्यादातर बॉलीवुड रीमेक लिटरल कॉपी में डूब जाते हैं, लेकिन ‘सैयारा’ ने इंटरप्रेट किया—रिप्रोड्यूस नहीं. ये एक बारीक फर्क है.
क्या बॉलीवुड सच में आउट ऑफ आइडियाज?
इंडस्ट्री के अंदरूनी लोग कहते हैं क्रिएटिव आइडियाज की कमी नहीं, लेकिन इन नई कहानियों पर पैसा और भरोसा जताने वालों की कमी है. ज्यादातर बड़े स्टूडियोज “बैंकेबल” IP को प्रेफर करते हैं—फ्रैंचाइजीज जैसे ‘सिंघम’, ‘टाइगर’, ‘पुष्पा’—जो मल्टी-प्लेटफॉर्म मोनेटाइज हो सकें. रेडिट पर ऑडियंस की नाराजगी साफ दिखती है. एक यूजर ने लिखा, “रीमेक से नफरत नहीं, लेजी वाले से है. इंस्पिरेशन लो, लेकिन कुछ नया फील कराओ.” दूसरा— “मलयालम-कोरियन देखने के बाद बॉलीवुड के वॉटरड-डाउन वर्जन हजम नहीं होते. हम सच्चाई चाहते हैं, न कि नकल.” ये सिर्फ एक-दो यूजर्स का मनना नहीं, बल्कि लोगों के मन की बात है.
पुरानी कहानियां दोहराते रहने से एक तरह का ठहराव आ जाता है. नई अवाजें, फर्स्ट-टाइम राइटर्स, रीजनल डायरेक्टर्स, भारतीय कहानीकार सब साइडलाइन हो जाते. ‘लापता लेडीज’ जैसी फिल्में—जेंडर डिस्क्रिमिनेशन और रूरल पावर स्ट्रक्चर्स पर रिसर्च बेस्ड—ओरिजिनल को नया मतलब देती हैं. ऑरिजनल की तड़प यही है कि जैसे ही आर्यन खान की ऑरिजनल सीरीज ‘बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ रिलीज हुई, लोगों ने इसे हाथों हाथ पसंद किया.
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