वो 65 साल पुराना थिएटर, जिसने किया मेकर्स को मालामाल, राज कपूर-अमिताभ बच्चन की भर दी थी तिजोरी

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राज कपूर से लेकर अमिताभ बच्चन के लिए एक थिएटर ऐसा था जो लकी साबित हुआ. यहां प्रकाश मेहरा से लेकर मनमोहन देसाई तक ने अपनी कई फिल्में रिलीज कीं. सब की सब हिट निकलीं. मगर अब वह थिएटर हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गया. चलिए बताते हैं अलंकार थिएटर के बारे में.

With the modernisation of cities, multiplexes with cushioned seats, gourmet popcorn and dazzling lights, have become the new normal.

बदलते दौर में काफी कुछ बदला है. जमाने के साथ सब चीजें अपडेट हुई हैं. फिल्मों को ही ले लीजिए, ब्लैक एंड व्हाइट से कलर तो आज के समय में एआई और वीएफएक्स की दुनिया ने सबको हिलाकर रख रखा है. ठीक ऐसे ही सिनेमाहॉल की भी अपनी ही जर्नी रही है. एक वक्त था जब सिनेमाघरों में AC नहीं होते थे. मगर फिल्मों का जुनून लोगों को थिएटर खींचता था. तब पॉपकॉर्न और मोमोज भी हॉल में नहीं मिलते थे. हो-हल्ला होता था तो टिकट काउंटर पर.

We may sit in luxury today, but the heartbeat of Indian cinema echoes loudest in those single-screen halls, where the screen is big, and emotions even bigger.

आज तो जमाना मल्टीप्लेक्स का है. सिनेमाघरों की शानो शौकत ही अलग हो चुकी है. मगर 90 के दशक में 1000 दर्शक साधारण कुर्सियों पर बैठकर फिल्में देखते थे. तब सिंगल स्क्रीन थिएटर का बोलबाला होता था. अब तो ऐसे थिएटर की संख्या बहुत कम रह गई है. मगर जो असली सिनेमा प्रेमी है, वह इन सिनेमाघरों को बखूबी पहचानता है.

One such single-screen cinema hall was in Mumbai. Opened in 1960, the place was considered the lucky charm of Bollywood’s greatest filmmakers.

मगर अब सिंगल स्क्रीन थिएटर्स धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं. हाल में ही एक ऐसा सिनेमाघर बंद हुआ, जहां कभी बड़े बड़े सुपरस्टार्स की फिल्मों का कब्जा होता था. कुछ डायरेक्टर और एक्टर के लिए वो सिनेमाहॉल लकी था. जब जब उसपर कोई फिल्म लगती, वो सुपरहिट ही निकलती.

Located between Girgaon and Grant Road, this theatre wasn’t just a cinema, it was an event. From Girgaon to Colaba, fans lined up around the block to see their favourite actors on the screens.

दरअसल हम बात कर रहे हैं अलंकार थिएटर की. जिसकी इमारत को भी हाल में ही धवस्त कर दिया गया. यह मुंबई का ऐसा पुराना सिंगल स्क्रीन थिएटर था जिसने सिनेमाप्रेमियों के साथ साथ स्टार्स, डायरेक्टर्स और मेकर्स को भी खूब यादें दी हैं.

It was the largest and most well-equipped single-screen theatre of that time. No cushioned seats. No caramel popcorn. Just 1,000 hearts beating together, whistling at every dialogue and song, applauding every hero’s entry.

ग्रांट रोड और गिरगांव रोड के बीच अलंकार थिएटर बसा था. जो आसपास के इलाकों में खूब फेमस था. यहां दोस्त भी आते तो कोई फैमिली के साथ फिल्मों का लुत्फ उठाते.

There was no air conditioning. But the moment the projector flickered to life, it brought anticipation among audiences. Wondering which theatre it is? We are talking about none but Alankar theatre.

अलंकार थिएटर से पहले नॉवेल्टी सिनेमा साल 2006 में इसी तरह हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गया तो न्यू एम्पायर नाम का थिएटर भी इसी तरह साल 2014 में आते आते बंद कर दिया गया. अब ऐसा ही आइकॉनिक सिनेमाघर अलंकार भी हमेशा हमेशा के लिए यादों में ही बस गया.

The first film to be released there was Bimal Roy’s production, Usne Kaha Tha. When Raj Kapoor chose this theatre for his film’s premiere, Jis Desh Mein Ganga Behti Hai, the cinema hall’s fate was sealed. It became the place where hits were born.

बताया गया कि घाटे के चलते अलंकार थिएटर के दरवाजे बंद हुए. पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर और कम स्क्रीनिंग के चलते लगातार मालिक को घाटा हो रहा था. एक वक्त था जब अलंकार में फिल्में लगाने के लिए मेकर्स के बीच में होड़ होती थी. बहुत से डायरेक्टर को लगता था कि ये थिएटर ही लकी है.

For every renowned filmmaker, this cinema hall became the preferred choice, and blockbuster films like Professor, Jab Jab Phool Khile, Phool Aur Patthar, Aan Milo Sajna, Charas and Khoon Pasina were all released here.

राइटर और लेखक युनूस खान ने फेसबुक पर इसका किस्सा भी शेयर किया. उन्होंने बताया कि कैसे प्रकाश मेहरा तो अपनी फिल्में इसी टॉकीज में रिलीज के लिए अड़ गए थे. वह इसे लकी चार्म मानते थे.

And when Muqaddar Ka Sikandar ran for 75 weeks, director Prakash Mehra knew it wasn’t luck, it was the magic of Alankar. He believed, “If the film releases at Alankar, it would definitely be a super hit.”

अलंकार थिएटर के इतिहास की बात करें तो ये साल 1960 में शुरू हुआ. इस थिएटर में पहली बार बिमल रॉय की ‘उसने कहा था’ रिलीज हुई और फिर राज कपूर की ‘जिस देश में गंगा बहती है’ लगी. फिर आगे चलकर तो ढेरों फिल्मों से ये सिनेमाघर गुलजार रहा.

Over time, Alankar Theatre suffered losses due to outdated infrastructure, limited screenings, and a lack of capacity to compete with multiplexes. It eventually shut down in 2006.

अमिताभ बच्चन की फिल्मों के लिए भी अलंकार थिएटर लकी रहा था. जहां एक साथ 1000 की संख्या में दर्शक बैठकर फिल्में देखते थे. अमिताभ बच्चन की मुकद्दर का सिकंदर, नमक हलाल से लेकर लावारिस जैसी फिल्में यहां रिलीज हुई और खूब कमाल दिखाने में कामयाब रही.

In 2025, Mumbai’s oldest running single-screen cinema, the heartbeat of the city, was reduced to rubble.

अलंकार थिएटर में प्रकाश मेहरा की तब मौज हुई थी जब यहां 75 हफ्ते तक मुकद्दर का सिकंदर चली. लोग खचाखच थिएटर में भरे होते और अमिताभ बच्चन की फिल्म का लुत्फ उठाते.

Alankar may be gone, but its spirit lives on for true cinema lovers. The reel may end. But the story never dies.

इसी तरह राज कपूर से लेकर मनमोहन देसाई भी अलंकार थिएटर को लकी मानते थे. मनमोहन देसाई और अमिताभ बच्चन की कुली ने भी यहां सिल्वर जुबली मनाई थी.

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