सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना ने रविवार (12 अक्टूबर, 2025) को कहा कि समय की मांग है कि सक्षम प्राधिकारी डीपफेक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित बाल शोषण को लेकर कानून बनाने पर विचार करें. जस्टिस नागरत्ना यूनिसेफ, भारत के सहयोग से सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय समिति की ओर से आयोजित ‘बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में उनके लिए एक सुरक्षित और अधिक सक्षम वातावरण की ओर’ विषय पर राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक विचार-विमर्श के समापन सत्र को संबोधित कर रही थीं.
उन्होंने कहा कि दो दिवसीय विचार-विमर्श के दौरान, बालिकाओं के साथ होने वाली हिंसा के विभिन्न रूपों पर चर्चा हुई और विशेष रूप से साइबर क्षेत्र और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के खतरों और आशंकाओं पर प्रकाश डाला गया.
डीपफेक और AI-आधारित बाल शोषण पर कानून जरूरी
विकसित होती तकनीकों से उत्पन्न विभिन्न खतरों का उल्लेख करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘समय की मांग है कि सक्षम प्राधिकारी डीपफेक और AI-आधारित बाल शोषण पर कानून बनाएं, 24 घंटे बाल यौन शोषण सामग्री की निगरानी, मंचों के लिए आयु-निर्धारण और प्रतिक्रिया समय-सीमा की राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी अनिवार्य करें.’
जस्टिस नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय समिति की अध्यक्ष भी हैं. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘पर्याप्त सतर्कता के साथ, हम हिंसा और बाल तस्करी की घटनाओं को शुरुआत से ही रोकने में सक्षम हो सकते हैं.’ उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बालिकाओं पर एक ‘AI साइबर अपराध सलाहकार समिति’ बनाने की संभावना पर विचार कर सकती है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि AI और विकसित होती तकनीकें बालिकाओं को कैसे प्रभावित करती हैं और इन्हें कैसे कम किया जा सकता है.
AI तकनीक के आधार पर खुद को ढालना जरूरी
बता दें कि इससे पहले डेटा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नवाचारों से जुड़ी मौजूदा कानूनी चुनौतियों को रेखांकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने शनिवार (11 अक्टूबर, 2025) को इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका को तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य के मुताबिक खुद को ढालना होगा.
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