सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि न्यायिक सेवाओं में शामिल होने वाली लगभग 60 फीसदी न्यायिक अधिकारी महिलाएं हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि महिलाएं यह उपलब्धि आरक्षण के कारण नहीं, बल्कि अपनी योग्यता (मेरिट) के दम पर हासिल कर रही हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने केंद्र सरकार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई), सुप्रीम कोर्ट के सचिव और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया है। एक याचिका पर यह नोटिस दिया गया है। इसमें देशभर की अदालतों और बार संघों में महिला वकीलों को पेशेवर चैम्बर (केबिन) आवंटित करने के लिए एक समान और लैंगिक संवेदनशील नीति बनाने की बात की गई है।
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याचिका में महिला वकीलों के लिए चैम्बर आवंटन में आरक्षण की मांग की गई थी। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने सवाल उठाते हुए कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से चैम्बर प्रणाली के खिलाफ हैं। उनके मुताबिक, इसके बजाय एक क्यूबिकल प्रणाली (वकीलों या कर्मचारियों को खुले हॉल में डेस्क में काम करने की जगह) और साथ बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए, जहां वकील मिलकर काम कर सकें।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हमने कई मंचों पर यह बात कही है और इस पर ध्यान भी दिलाया है कि न्यायिक सेवाओं में महिलाएं बड़ी संख्या में आ रही हैं। लगभग 60 फीसदी महिलाएं मेरिट के आधार पर सेवाओं में प्रवेश कर रही हैं, न कि आरक्षण के कारण। ऐसे में मुझे यह थोड़ा विरोधाभासी लगता है कि जब महिलाएं योग्यता से सब कुछ हासिल कर सकती हैं, तो वे किसी विशेष सुविधा की मांग क्यों कर रही हैं?
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बेंच ने कहा कि अगर कोर्ट महिला वकीलों की चैम्बर में प्राथमिकता की मांग पर विचार करती है, तो फिर किसी और दिन शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए भी यही मांग आ सकती है। वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर याचिकाकर्ताओं भक्ति पसरीजा और अन्य की ओर से पेश हुईं। उन्होंने बताया कि फिलहाल केवल रोहिणी कोर्ट में ही महिलाओं के लिए चैम्बर आवंटन में 10 फीसदी आरक्षण है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत में वकीलों के लिए जो स्थान तैयार किया गया है, वह आने वाले 50 वर्षों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
जस्टिस बागची ने कहा कि इस पेशे में आने वाली युवा महिला वकीलों की जरूरतों का ध्यान रखना जरूरी है। उनके लिए छोटे बच्चों के देखभाल केंद्र, अलग वॉशरूम और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए, क्योंकि अधिकतर महिलाएं बच्चों की देखभाल के लिए पेशा छोड़ देती हैं। याचिका दाखिल करने वाली महिलाएं पेशेवर वकील हैं। उन्होंने दावा किया कि वे 15 से 25 वर्षों से प्रैक्टिस कर रही हैं, लेकिन आज तक उन्हें कोई चैम्बर या पेशेवर कार्यस्थल आवंटित नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार संघ (एससीबीए) की मौजूदा चैम्बर आवंटन नीति में महिला वकीलों के लिए कोई आरक्षण नहीं है।
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