Origin of Varah: हिंदू शास्त्रों के अनुसार, जब भूदेवी ब्रह्मांडीय सागर में डूब गई, तो विष्णु के वराह अवतार ने उन्हें अपने दांतों पर उठा लिया था. वराह रूप के प्रकट होने से आकाश पूरी तरह हिल गया.
एक ही गर्जना से उन्होंने जल को चीर दिया और संपूर्ण पृथ्वी को अपने ऊपर उठाकर उसे उसके निश्चित स्थान पर पुनर्स्थापित कर दिया.
सूअर का ही रूप क्यों चुना गया?
दरअसल वराह रूप काफी शक्तिशाली है, जो कीचड़ में आसानी से बिल बना सकता है. वराह अथाह सागर की गहराइयों में जा सकता है, दबी हुई चीजों को उखाड़ सकता है. तांत्रिक कल्पनाओं में वराह वह शक्ति है, जो अंधकार की परतों को आसानी से भेद सकती है.
बात की जाए वराह से जुड़े मंत्रों के बारे में, तो ॐ नमः श्री वराहाय धरनुद्धरणाय च स्वाहा है. इस मंत्र के प्रयोग से अनुष्ठानिक यज्ञ में उस दैवीय शक्तियों का आह्वान किया जाता है, जो धारण और पुनर्स्थापना करती है.
वराह की शक्ति वाराही देवी
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार वराह का काम केवल उद्धार करना ही नहीं, बल्कि सूक्ष्म से सूक्ष्म लोकों की पुनर्व्यवस्था करना है. वे अपने दांतों से भू (पृथ्वी) को उठाते हैं, जो भेदक भ्रम का प्रतीक माना जाता है.
तांत्रिक शक्तियों में वराह की शक्ति देवी वाराही है. वराह मुख वाली देवी, जो मातृकाओं में से एक है. वह सूअर सिद्धांत के स्त्री ऊर्जा का प्रतीक मानी जाता है.
वराह का ना जन्म है ना मृत्यु, वे शाश्वत शक्ति का पालन करते हैं, जो जरूरत पड़ने पर ही प्रकट होती है. हर ब्रह्मांडीय चक्र में, जब अराजकता हावी हो जाती है, तो वे व्यवस्था बहाल करने के लिए वापस लौटते हैं.
वराह अवतार परम तत्व से प्रकट होते हैं, जब पृथ्वी आदि जल में डूबी होती है. उनका अवतरण ब्रह्मांडीय पुनरुद्धार का एक दैवीय कार्य करता है.
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